महाविद्यालय का इतिहास (Brief History)

महर्षि वाल्मीकि की तपोभूमि और महात्मा गाँधी की कर्मभूमि चम्पारण की धरती पर छोटी गंडक(सिकरहना) नदी के किनारे सिद्धपीठ बकुलहरमठ अवस्थित है | यह महाविद्यालय चनपटिया स्टेशन से सात किलोमीटर पूरब में है | संस्कृत-संस्कृति- रक्षण एवं अभिबर्द्धन हेतु १९३९ ई० में तपोनिष्ठ महंत परमपूज्य स्व० हरिहर गिरि जी महाराज ने संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की | यह महाविद्यालय १ बीघा १८ कट्ठा ८ धुर में अवस्थित है | महंत जी ने यह जमीन भूमिदान में दिया था | इस महाविद्यालय के भवन का शिलान्यास श्रीमान् महाराजाधिराज कामेश्वर सिंह जी दरभंगा के करकमलों द्वारा २६.०२.१९४० ई० में किया गया | किंवदंति है कि महाराजाधिराज के स्वगत में घोघा से बकुलहर तक लाल कालीन बिछाया गया था और सड़क के दोनों तरफ मंगल कलश रखे गये थे | इस महाविद्यालय के भवन का उद्घाटन महाराजाधिराज के अनुज राजा बहादुर श्रीमान विश्वेश्वर सिंह द्वारा संपन्न किया गया था | इस महाविद्यालय में उपशास्त्री एवं शास्त्री स्तर तक की पढाई होती है तथा साहित्य, व्याकरण, वेद, ज्तोतिष, दर्शन आदि विषयों का अध्यापन सुयोग्य अध्यापकों द्वारा संपन्न किया जाता है | इस महाविद्यालय को U.G.C. द्वारा ११वीं एवं १२वीं योजना के तहत अनुदान प्राप्त हुआ जिससे महाविद्यालय महिला छात्रावास तथा पुस्तकालय भवन का निर्माण कराया गया | साथ ही विकास राशि से पुस्तक, कंप्यूटर्स, फोटो स्टेट मशीन, फैक्स, सोलर, प्रोजेक्टर आदि का क्रय किया गया | पुस्तकालय भवन तथा महिला छात्रावास का शिलान्यास तत्कालीन कुलपति डॉ० अरविन्द कुमार पाण्डेय के कर कमलों द्वारा किया गया | सम्प्रति यह महाविद्यालय वर्तमान कुलपति प्रो०(डॉ०) सर्वनारायण झा के दिशा-निर्देश में प्रधानाचार्या डॉ० मीनू मिश्रा के नेतृत्व में निरंतर विकास की ओर अग्रसर है |